सोमवार, 24 जुलाई 2023

शीतला चालीसा -Sheetla Chalisa

                                                 शीतला चालीसा

sheetla mata

        ॥ दोहा॥

           जय जय माता शीतला ,

            तुमहिं धरै जो ध्यान ।

          होय विमल शीतल हृदय,

           विकसै बुद्धी बल ज्ञान ॥

          

           घट-घट वासी शीतला,

           शीतल प्रभा तुम्हार ।

           शीतल छइयां में झुलई,

            मइयां पलना डार ॥


॥ चौपाई ॥


जय-जय-जय श्री शीतला भवानी ।

जय जग जननि सकल गुणधानी ॥


गृह-गृह शक्ति तुम्हारी राजित ।

पूरण शरदचंद्र समसाजित ॥


विस्फोटक से जलत शरीरा ।

शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥


मात शीतला तव शुभनामा ।

सबके गाढे आवहिं कामा ॥


शोक हरी शंकरी भवानी ।

बाल-प्राणक्षरी सुख दानी ॥


शुचि मार्जनी कलश करराजै ।

मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥


चौसठ योगिन संग में गावैं ।

वीणा ताल मृदंग बजावै ॥


नृत्य नाथ भैरौं दिखलावैं ।

सहज शेष शिव पार ना पावैं ॥


धन्य धन्य धात्री महारानी ।

सुरनर मुनि तब सुयश बखानी ॥


ज्वाला रूप महा बलकारी ।

दैत्य एक विस्फोटक भारी ॥


घर घर प्रविशत कोई न रक्षत ।

रोग रूप धरी बालक भक्षत ॥


हाहाकार मच्यो जगभारी ।

सक्यो न जब संकट टारी ॥


तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा ।

कर में लिये मार्जनी सूपा ॥


विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्हो ।

मूसल प्रमाण बहुविधि कीन्हो ॥


बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा ।

मैय्या नहीं भल मैं कछु कीन्हा ॥


अबनहिं मातु काहुगृह जइहौं ।

जहँ अपवित्र वही घर रहि हो ॥


अब भगतन शीतल भय जइहौं ।

विस्फोटक भय घोर नसइहौं ॥


श्री शीतलहिं भजे कल्याना ।

वचन सत्य भाषे भगवाना ॥


पूजन पाठ मातु जब करी है ।

भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥


विस्फोटक भय जिहि गृह भाई ।

भजै देवि कहँ यही उपाई ॥


कलश शीतलाका सजवावै ।

द्विज से विधीवत पाठ करावै ॥


तुम्हीं शीतला, जगकी माता ।

तुम्हीं पिता जग की सुखदाता ॥


तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी ।

नमो नमामी शीतले देवी ॥


नमो सुखकरनी दु:खहरणी ।

नमो- नमो जगतारणि धरणी ॥


नमो नमो त्रलोक्य वंदिनी ।

दुखदारिद्रक निकंदिनी ॥


श्री शीतला , शेढ़ला, महला ।

रुणलीहृणनी मातृ मंदला ॥


हो तुम दिगम्बर तनुधारी ।

शोभित पंचनाम असवारी ॥


रासभ, खर , बैसाख सुनंदन ।

गर्दभ दुर्वाकंद निकंदन ॥


सुमिरत संग शीतला माई,

जाही सकल सुख दूर पराई ॥


गलका, गलगन्डादि जुहोई ।

ताकर मंत्र न औषधि कोई ॥


एक मातु जी का आराधन ।

और नहिं कोई है साधन ॥


निश्चय मातु शरण जो आवै ।

निर्भय मन इच्छित फल पावै ॥


कोढी, निर्मल काया धारै ।

अंधा, दृग निज दृष्टि निहारै ॥


बंध्या नारी पुत्र को पावै ।

जन्म दरिद्र धनी होइ जावै ॥


मातु शीतला के गुण गावत ।

लखा मूक को छंद बनावत ॥


यामे कोई करै जनि शंका ।

जग मे मैया का ही डंका ॥


भगत ‘कमल’ प्रभुदासा ।

तट प्रयाग से पूरब पासा ॥


ग्राम तिवारी पूर मम बासा ।

ककरा गंगा तट दुर्वासा ॥


अब विलंब मैं तोहि पुकारत ।

मातृ कृपा कौ बाट निहारत ॥


पड़ा द्वार सब आस लगाई ।

अब सुधि लेत शीतला माई ॥


॥ दोहा ॥

यह चालीसा शीतला,

पाठ करे जो कोय ।

सपनें दुख व्यापे नही,

नित सब मंगल होय ॥


बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल,

भाल भल किंतू ।

जग जननी का ये चरित,

रचित भक्ति रस बिंतू ॥

॥ इति श्री शीतला चालीसा ॥


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